Pushyamitra Shunga kon tha jisne Morywansh ka swarnash kiya

Pushyamitra Shunga kon tha jisne Morywansh ka swarnash kiya, बौद्ध धर्म के साथ साथ मौर्य वंश का भी सर्वनाश , Mory wansh ka swarnash. Interesting fact about pushyamitra shunga.

एक महान सम्राट पुष्यमित्र शुंग

भारत वर्ष में कई महान राजा हुए हैं. हिंदू धर्म ग्रंथ और ऐतिहासिक साहित्य में जिनका वर्णन किया गया है , ऐसे ही एक महान सम्राट की हम बात करने जा रहे है, जिन्होंने ने बौद्ध धर्म के साथ साथ मौर्य वंश का भी सर्वनाश किया।
इतहास में कई महँ सम्राट हुवे, ऐसे ही एक प्रतापी राजा (सम्राट) हुए पुष्यमित्र शुंग. जिन्होंने शुंग वंश की नीव राखी, शुंग वंश की शुरूआत करने वाले पुष्यमित्र शुंग जन्म से एक ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय थे. ये मौर्य वंश के आखिरी शासक राजा बृहद्रथ के सेनापति थ। पुष्यमित्र शुंग ने राजा बृहद्रथ की हत्त्या करके स्वयं उनकी जगह राजा बन गया थ। पुष्यमित्र ने बृहद्रथ की ह्त्या कर मौर्य साम्राज्य का अंत किया एवं भारत में फिर से वैदिक धर्म की स्थापना की।

आइये जानते है आखिर किस कारण से पुष्यमित्र शुंग ने मौर्य साम्राज्य का अंत किया और क्यों उन्होंने बौद्ध धर्म का खात्मा क्यों किया :-

मौर्य वंश का पतन कैसे हुवा

मगध साम्राज्य के नन्द वंशीय सम्राट धनानन्द के साथ नन्द वंश का पतन (खात्मा) तथा मगध सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के साथ मौर्य साम्राज्य के उदय का श्रेय ब्राह्मण “ आचार्य चाणक्य ” को जाता है | आचार्य चाणक्य ने अपने जीवित रहने तक विश्व की प्राचीनतम हिंदू धर्म की वैदिक पद्ति को निभाते हुए मगध की धरती को बौद्ध धर्म के प्रभाव से बचा कर रखा | सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य की मौत के बाद मौर्य साम्राज्य की कमान उनके पुत्र बिन्दुसार के हाथों में आ गई, बिन्दुसार ने अपनी दीक्षा आजीविक संप्रदाय से ली. जिसके चलते वह भी वेद विरोधी सोच वाले बन गए. और आम नागरिकों में प्रचलित भाषा संस्कृत व वैदिक ज्ञान को नष्ट करने कार्य करते हूये,अपनी सोच का प्रसार किया। इसके पश्यात सम्राट बिन्दुसार के पुत्र अशोक सम्राट अशोक बने जिन्होंने चारो और अपनी ख्याति फैलाई ,

कलिंग के साथ भीषण युद्ध

सम्राट अशोक ने कलिंग के साथ भीषण युद्ध किया , जिसके परिणाम से अशोक का मन बहुत ग्लानि से भर गया एवं उसने बौद्ध धर्म को अपना लिया था बौद्ध धर्म का पालन करने लगा। सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के पश्यात बोध धर्म का चहु और प्रचार प्रसार किया। सम्राट अशोक ने लगभग २० वर्षों तक एक बौद्ध सम्राट के रूप में मगध पर शासन किय। सम्राट अशोक ने अपने पुरे शाशन तंत्र को बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार में लगा दिया। सम्राट अशोक के इस कार्य का प्रभाव उनक नोवे एवं अंतिम मगध सम्राट वृहद्रथ तक रहा। जिन्होंने पुष्यमित्र को अपना सेनापति नियुक्त किया ,

आखिर कैसे हुवी शुंग वंश की स्थापना, आइये जानते है

अशोक द्वारा अपनाए गए बौद्ध धर्म के कारण पूरा मौर्य साम्राज्य हिंसा से दूर हो गया था. इसका फायदा उठाते हुए साम्राज्य के छोटे-छोटे राज्य अपने आपको स्वतंत्र बनाने की कोशिशों में लग गए. इसी के फलस्वरूप, अशोक की मौत और वृहद्रथ के अंतिम मौर्य शासक बनने तक मौर्य साम्राज्य बेहद कमजोर हो गया था. वहीं, इस समय तक पूरा मगध साम्राज्य बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गया. यकीन करना मुश्किल था, लेकिन जिस धरती ने सिकंदर और सैल्युकस जैसे योद्धाओं को पराजित किया, वह अब अपनी वीर वृत्ति खो चुकी थी. अब विदेशी भारत पर हावी होते जा रहे थे. कारण केवल एक था बौद्ध धर्म की अहिंसात्मक नीतियां. इस समय भारत की खोई हुई पहचान दिलाने के के लिए एक शासक की जरूरत थी. जल्द ही उसे पुष्यमित्र शुंग नाम का वो महान शासक मिल ही गया .
राजा बृहद्रथ की सेना की कमान संभालने वाले ब्राह्मण सेनानायक पुष्यमित्र शुंग की सोच राजा से काफी अलग थी. जिस प्रकार बीते कुछ वर्षों में भारत की वैदिक सभ्यता का हनन हुआ था, उसे लेकर पुष्यमित्र के मन में विचार उठते रहते थे.

बौद्ध गुरुओं को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार

इसी बीच राजा के पास खबर आई कि कुछ ग्रीक शासक भारत पर आक्रमण करने की योजना बना रहे हैं. इन ग्रीक शासकों ने भारत विजय के लिए बौद्ध मठों के धर्म गुरुओं को अपने साथ मिला लिया था. अर्थात बौद्ध धर्म गुरु राजद्रोह कर रहे थे. भारत विजय की तैयारी शुरू हो गई. वह ग्रीक सैनिकों को भिक्षुओं के वेश में अपने मठों में आसरा देने लगे और हथियार छिपाने लगे. ये खबर जैसे ही पुष्यमित्र शुंग को पता चली, उन्होंने राजा से बौद्ध मठों की तलाशी लेने की आज्ञा मांगी. मगर राजा ने पुष्यमित्र को आज्ञा देने से इनकार कर दिया. इस दौरान सेनापति पुष्यमित्र राजा की आज्ञा के बिना ही अपने सैनिकों समेत मठों की जांच करने चले गए. जहां जांच के दौरान मठों से ग्रीक सैनिक पकड़े गए. इन्हें देखते ही मौत के घाट उतार दिया गया. वहीं, उनका साथ देने वाले बौद्ध गुरुओं को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर राज दरबार में पेश किया गया. Pushyamitra Shunga kon tha jisne Morywansh ka swarnash kiya

शुंग वंश’ की नींव

राजा को पुष्यमित्र का यह व्यहार अच्छा नहीं लगा, पुश्यमिते शुंग ने एक दिन उसने अपनी सब सेना को एकत्र कर उसके प्रदर्शन की व्यवस्था की। सम्राट बृहद्रथ को भी इस प्रदर्शन के अवसर पर निमंत्रित किया गया। सेना पुष्यमित्र के प्रति अनुरक्त थी। सेना के सम्मुख ही पुष्यमित्र द्वारा बृहद्रथ की हत्या कर दी गई, और वह विशाल मगध साम्राज्य का अधिपति बन गया। इस प्रकार पुष्यमित्र शुंग ने ‘शुंग वंश’ की नींव रखी। हर्षचरित में बृहद्रथ को ‘प्रतिज्ञादुर्बल’ कहा गया है। इसका अभिप्राय यह है कि, राज्याभिषेक के समय प्राचीन आर्य परम्परा के अनुसार राजा को जो प्रतिज्ञा करनी होती थी, बृहद्रथ उसके पालन में दुर्बल था। सेना उसके प्रति अनुरक्त नहीं थी। इसीलिए सेनानी पुष्यमित्र का षड़यंत्र सफल हो गया।

अश्वमेध यज्ञ:

अयोध्या में पुष्यमित्र का एक शिलालेख प्राप्त हुआ है, जिसमें उसे ‘द्विरश्वमेधयाजी’ कहा गया है। इससे सूचित होता है, कि पुष्यमित्र ने दो बार अश्वमेध यज्ञ किए थे। अहिंसा-प्रधान बौद्ध और जैन धर्मों के उत्कर्ष के कारण इस यज्ञ की परिपाटी भारत में विलुप्त हो गई थी। अब पुष्यमित्र ने इसे पुनरुज्जीवित किया। सम्भवतः पतञ्जलि मुनि इन यज्ञों में पुष्यमित्र के पुरोहित थे। इसलिए उन्होंने ‘महाभाष्य’ में लिखा है-‘इह पुष्यमित्रं याजयामः’ (हम यहाँ पुष्यमित्र का यज्ञ करा रहे हैं)। अश्वमेध के लिए जो घोड़ा छोड़ा गया, उसकी रक्षा का कार्य वसुमित्र के सुपुर्द किया गया था। सिन्धु नदी के तट पर यवनों ने इस घोड़े को पकड़ लिया और वसुमित्र ने उन्हें परास्त कर इसे उनसे छुड़वाया। किन विजयों के उपलक्ष्य में पुष्यमित्र ने दो बार अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है। Pushyamitra Shunga kon tha

वैदिक धर्म का पुनरुत्थान

शुंग सम्राट प्राचीन वैदिक धर्म के अनुयायी थे। उनके समय में बौद्ध और जैन धर्मों का ह्रास होकर वैदिक धर्म का पुनरुत्थान प्रारम्भ हुआ। ‘दिव्यावदान’ के अनुसार पुष्यमित्र बौद्धों से द्वेष करता था, और उसने बहुत-से स्तूपों का ध्वंस करवाया था, और बहुत-से बौद्ध-श्रमणों की हत्या करायी थी। दिव्यावदान में तो यहाँ तक लिखा है, कि साकल (सियालकोट) में जाकर उसने घोषणा की थी, कि कोई किसी श्रमण का सिर लाकर देगा, तो उसे मैं सौ दीनार पारितोषिक दूँगा। सम्भव है, बौद्ध ग्रंथ के इस कथन में अत्युक्ति हो, पर इसमें सन्देह नहीं कि पुष्यमित्र के समय में यज्ञप्रधान वैदिक धर्म का पुनरुत्थान शुरू हो गया था। उस द्वारा किए गए अश्वमेध यज्ञ ही इसके प्रमाण हैं।

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