Sawanliya Seth Mandir ka ithas | सांवलिया सेठ मंदिर का इतहास

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सांवलिया सेठ मंदिर चित्तौड़गढ़ का इतिहास , Sawanliya Seth Mandir Ithas

Interesting Fact: सांवलिया सेठ मंदिर चित्तौड़गढ़ का इतिहास किवदंतियों के अनुसार सांवलिया सेठ मीरा बाई के वहीं गिरधर गोपाल (Gopal) हैं जिनकी वे पूजा किया करती थीं। मीरा बाई संत महात्माओं की जमात में इन मूर्तियों के साथ भ्रमणशील #bhramaNashil रहती थीं। ऐसी ही एक दयाराम नामक संत की जमात (समुदाय, संघ (व्यक्तियों का) थी जिनके पास ये मूर्तियां थीं। भगवान श्री सांवलिया सेठ का संबंध मीरा बाई से बताया जाता है। किवदंतियों (किंवदंती दृष्टांत स्वरूप उल्लेख की जानेवाली विपर्यस्त अथवा असंबद्ध इतिहास की घटनाओं के आधार पर लोकजीवन में प्रचलित कथाओं को कहते हैं) के अनुसार सांवलिया सेठ मीरा बाई के वही गिरधर गोपाल है जिनकी वह पूजा किया करती थी। मीरा बाई संत महात्माओं की जमात में इन मूर्तियों के साथ भ्रमणशील रहती थी। ऐसी ही एक दयाराम नामक संत की जमात थी जिनके पास ये मूर्तियां थी। Sawanliya Seth Mandir ka ithas

संत दयाराम जी Sant Dayaram ji

एक बार जब औरंगजेब की मुग़ल सेना मंदिरों को तोड़ रही थी। मेवाड़ #Mewad राज्य में पंहुचने पर मुग़ल सैनिकों को इन मूर्तियों के बारे में पता लगा। तब संत दयाराम जी ने प्रभु प्रेरणा से इन मूर्तियों को बागुंड-भादसौड़ा की छापर (खुला मैदान) में एक वट-वृक्ष के नीचे गड्ढा खोद कर पधरा दिया और फिर समय बीतने के साथ संत दयाराम जी का देवलोकगमन हो गया। Sawanliya Seth Mandir ka ithas

उदयपुर मेवाड़ राज-परिवार ने बनवाया मंदिर

उदयपुर मेवाड़ राज-परिवार ने बनवाया मंदिर कहा जाता है कि सन 1840 में गांव मंडफिया निवासी भोलाराम गुर्जर (Bholaram Gurjar) नाम के ग्वाले को एक सपना आया कि भादसोड़ा-बागूंड के छापर में 4 मूर्तियां ज़मीन में दबी हुई हैं, जब उस जगह पर खुदाई की गई तो भोलाराम #Bholaram का सपना सही निकला और वहां से एक जैसी 4 मूर्तियां प्रकट हुईं। फिर उदयपुर मेवाड़ राज-परिवार के भींडर ठिकाने की ओर से सांवलिया जी का मंदिर बनवाया गया। यह मंदिर सबसे पुराना मंदिर है इसलिए यह सांवलिया सेठ प्राचीन मंदिर के नाम से जाना जाता है। Sawanliya Seth Mandir ka ithas

मंझली मूर्ति को वहीं खुदाई की जगह स्थापित किया गया इसे प्राकट्य स्थल मंदिर भी कहा जाता है। सबसे छोटी मूर्ति भोलाराम गुर्जर (Bholaram Gurjar) द्वारा मंडफिया ग्राम ले जाई गई जिसे उन्होंने अपने घर के परिण्डे में स्थापित करके पूजा आरंभ कर दी। चौथी मूर्ति निकालते समय खण्डित हो गई जिसे वापस उसी जगह पधरा दिया गया।

व्यापार में स्वयं भगवन को पार्टनर बनाते है लोग

व्यापार बढ़ाने और अधिक मुनाफा कमाने के लिए व्यापारियों के बीच अक्सर पार्टनरशिप होती है। नफा और नुकसान के लिए वे दोनों ही जिम्मेदार होते हैं, मगर यहां तो खुद भगवान को पार्टनर बनाया जाता है और व्यापार में फायदा होने पर निश्चित धन राशि भगवान तक पहुंचाई भी जाती है। इस बात का उदाहरण है राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के मण्डफिया स्थित कृष्ण मंदिर है, जो सांवलिया सेठ के नाम से प्रसिद्ध है। Sawanliya Seth Mandir ka ithas

कालान्तर (नियत समय के बाद का समय, अन्य समय।), में सभी जगह भव्य मंदिर बनते गए। तीनों मंदिरों की ख्याति भी दूर-दूर तक फैली। आज भी दूर-दूर से लाखों यात्री प्रति वर्ष श्री सांवलिया सेठ दर्शन करने आते हैं। सांवलिया सेठ के बारे में यह मान्यता है कि नानी बाई का मायरा करने के लिए स्वयं श्री कृष्ण ने वह रूप धारण किया था। व्यापार जगत में उनकी ख्याति इतनी है कि लोग अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए उन्हें अपना बिजनेस पार्टनर बनाते हैं।#Kuchinteresting

कोन है बाबा खाटू श्याम जी ?

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