navratri ka mahatva नवरात्री शुरू होते ही देशभर में गरबा और डांडिया रास का रंग चारों ओर बिखरने लगता है। मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए जगह-जगह गरबा नृत्य और डांडिया रास का आयोजन किया जाता है। युवक युवतियां खूबसूरत पारंपरिक पोशाक, और डांडियों की खनक नवरात्र के इस माहौल को और भी खुशनुमा बना देते हैं।
शारदीय नवरात्रि आते ही गरबे की धूम छा जाती है। गुजरात का पारम्पारिक नृत्य अब धीरे धीरे पूरे देश में नवरात्रियों के दौरान बहुत ही उत्साह के साथ खेला जाता है.
गरबा और नवरात्रि का मिलाप आज से कई वर्ष पुराना है। पहले इसे केवल गुजरात और राजस्थान जैसे पारंपरिक स्थानों पर ही खेला जाता था लेकिन धीरे-धीरे इसे पूरे भारत समेत विश्व के कई देशों ने स्वीकार कर लिया।
घट स्थापना से शुरु
घट स्थापना से शुरु दीप गर्भ के स्थापित होने के बाद महिलाएं और युवतियां रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर मां शक्ति के समक्ष नृत्य कर उन्हें प्रसन्न करती हैं। गर्भ दीप स्त्री की सृजनशक्ति का प्रतीक है और गरबा इसी दीप गर्भ का अपभ्रंश रूप है। घट स्थापना गरबा को लोग पवित्र परंपरा से जोड़ते हैं और ऐसा कहा जाता है कि यह नृत्य मां दुर्गा को काफी पसंद हैं इसलिए नवरात्रि के दिनों में इस नृत्य के जरिये मां को प्रसन्न करने की कोशिश की जाती है। इसलिए घट स्थापना होने के बाद इस नृत्य का आरंभ होता है।
गरबा का शाब्दिक अर्थ
दीपगर्भ ही गरबा कहलाता है इसलिए आपको हर डांडिया या गरबा खेलते वक्त महिलाएं सजे हुए घट के साथ दिखाई देती है। जिस पर दिया जलाकर इस नृत्य का आरंभ किया जाता है। यह घट दीपगर्भ कहलाता है और दीपगर्भ ही गरबा कहलाता है।
3 तालियों का प्रयोग
गरबा नृत्य के दौरान आपने देखा होगा कि महिलाएं 3 तालियों का प्रयोग करती हैं। ये 3 तालियां इस पूरे ब्रह्मांड के त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश को समर्पित होती हैं। गरबा नृत्य में ये तीन तालियां बजाकर इन तीनों देवताओं का आह्वान किया जाता है। Navratri ka mahatva
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